Friday, July 06, 2007

बिदाई पर

कभी कभार
एक लम्हा
छूट जाता है हमारे पीछे ही
दीवारों पर लिखा तो
मिटा सकते हैं हम
लेकिन
दीवारों के जिस्म में लिखा
कहॉ पोछ सकते हैं कभी !

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

दीवारों के जिस्म में लिखा
कहॉ पोछ सकते हैं कभी !

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अपनी माटी
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