Thursday, July 26, 2007

समंदर में

कभी कस्ती, कभी तूफ़ां, कभी लहरें समंदर में;
कई यादें, कई आंसू, कई चहरे समंदर में.

वहां था पानी ही पानी, नहीं शबनम की दो बुंदें;
अरे! आश्चर्य! कोई दे रहा पहरे समंदर में.

मत छेड तू उसको, वह पीछे पीछे दौडेगा;
अरे! ओ डूब जाने के कई खतरे समंदर में.

कितनी सदियों से वह चुपचाप है बैठा;
न जाने कौन है जो है, इतने गहरे समंदर में.

अभी तो सिर्फ़ छुआ था, मुझे वह मेरे बिस्तर पर;
तभी से दौडती है उठती हुई लहरें समंदर में.

4 comments:

Udan Tashtari said...

आज पहली बार आपके चिट्ठे पर आया. बहुत स्वागत है हिन्दी चिट्ठाजगत में. लिखते रहें. अनेकों शुभकामनायें.

Mohinder56 said...

स्वागत है भाई आप का चिट्ठों के समन्दर में

लिखते रहें...

और ये today in history पेज से हटा दें पेज देर से लोड होता है... पाठक बिन पढे लोट जायेगे

Vijaykumar Dave said...

उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद..

टुडे इन हिस्टरी हटा दिया है...

कुछ फर्क पडा हो तो जरूर से बताइयेगा...

आपका

विजयकुमार दवे

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया लिखते हो\बधाई\

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अपनी माटी
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