अंधियारी गली के किनारे खडे
एक लैंप पोस्ट पर टंगी हुई
डाक पेटी में -
हररोज डाला करता हूँ मैं -
एक ख़त।
मेरा ख़त अन्दर जाते ही
डाक पेटी के बदन में सिहरन
उठती है,
न जाने क्यों ?
एक दिन मैंने पूछा -
"तू क्यों सिहर उठती हो
मेरे ख़त डालने पर ?"
बोली -
" उत्तर न मिलने पर भी
ख़त डाले जा रहे हो ! -
सिहर न उठू तो क्या करूं ?
तूने मुझे वन वे जो बना रखा है ।"
Friday, July 06, 2007
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5 comments:
विजय भाई,
हिन्दी चिट्थाजगत में आपका हार्दिक अभिनन्दन!!
naye chiTTaakaaro.n ke swaagat kaa pRRiShT dekhen:
http://www.akshargram.com/sarvagya/index.php/Welcome
विजय भाई,
कविता में गहरे अर्थ निहित हैं। फिर भी, अंत में कविता का मर्म टूट जाता है। िस पर ध्यान दें।
निखिल आनंद गिरि
www.bura-bhala.blogspot.com
www.hindyugm.com
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. हम सब मिलकर हिन्दी के लिये बहुत कुछ कर सकते हैं.
डाक पेटी पर आपने जो लिखा है वह अच्छा बन पडा है. प्रतीकात्मक है
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
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