Saturday, December 29, 2007

एक आशा

सदियों की तलाश
पूरी हुई इस जनम में ...
तुझे ढूंढकर .

अब शुरू हो रही है
इंतजार की घडियां ...

पूर्ण होने में अभी देर है
जन्माजन्म का चक्र .

इंतज़ार के बाद
मिलन भी
सदियों तक .

3 comments:

ghughutibasuti said...

कविता अच्छी लगी । दो एक शब्दों को ठीक कर लेंगे तो बढ़िया रहेगा ।
पूरी हुई ईस जनम में ...(इस)
इंतझार के बाद ...(इंतजार)
घुघूती बासूती

Anonymous said...

Now, i am ur fan 4 ur creation. I like to read all of dis and i also write some. best of luck uncle

mjhaveri said...

विजय कुमारजी
मुझे तो आपकी सारी कविताए भाइ।
कविता करना मेरी दृष्टिमे सबसे उंची प्रतिभाकी अभिव्यक्ति है। बरगद के पेड वाली कविता मुझे कुछ अधिक अच्छी लगी--- एक गहन चित्र खिंचने मे, न्यून तम शब्दोसे, आप सफल हो पाए, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ।
डॉ. मधुसूदन झवेरी
University of Massachusetts.
Dartmouth

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अपनी माटी
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