Friday, June 22, 2007

याद

कब तक ढोते रहोगे तुम
मेरी यादों को ?
कितने क्षण ?
- लाखों - करोडों क्षण ?
ठीक है, याद ढोना नहीं,
- याद करना नहीं।

परंतु
इतना जरूर करना
भूल मत जाना.

Friday, June 15, 2007

आओ चले कहीं दूर

आओ चले कहीं दूर
चले सपनों के गांव में

खेलें चलो हाथ पकड़कर
जरनोँ की मस्ती से
घूमें चलों साथ चलकर
पहाडों की बस्ती में
वादियों को हम चूमें
चलो साथ बागों में
आओ चले कहीं दूर
चले सपनो के गांव में

तू जो साथ चल दे मेरे
चल देंगी ये राहें
तू जो रहे पास मेरे
खिल उठेंगी बहारें
डाले हम डेरा तेरी
नजरों की छांव में
आओ चले कहीं दूर
चले सपनों के गांव में
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अपनी माटी
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