आओ चले कहीं दूर
चले सपनों के गांव में
खेलें चलो हाथ पकड़कर
जरनोँ की मस्ती से
घूमें चलों साथ चलकर
पहाडों की बस्ती में
वादियों को हम चूमें
चलो साथ बागों में
आओ चले कहीं दूर
चले सपनो के गांव में
तू जो साथ चल दे मेरे
चल देंगी ये राहें
तू जो रहे पास मेरे
खिल उठेंगी बहारें
डाले हम डेरा तेरी
नजरों की छांव में
आओ चले कहीं दूर
चले सपनों के गांव में
Friday, June 15, 2007
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3 comments:
bahut hee achhee rachanaa hai...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है
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