Saturday, December 29, 2007
श्री नरेन्द्र मोदी की कार्यकर्ताओं को सीख - जब मोदीजी की आंख से अश्रु बहने लगे ...
श्री नरेन्द्र मोदी की कार्यकर्ताओं को सीख -
जब मोदीजी की अश्रु बहने लगे ...
अपतिम सफलता के बाद गांधीनगर के टाउनहोल में नवनिर्वाचित विधानसभा सदस्यों और कार्यकर्ताओं को श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया संबोधन ... जिसमें बात करते करते श्री मोदी जी की आंख से अश्रु बहने लगे ...
वास्तव में, भिष्म पितामह ने बाणशय्या पर युधिष्ठिर को जो सीख दी थी, उसकी याद ताजा हो गई.
पूरा वक्तव्य चार हिस्सों में है ...
प्रत्येक विडीयो हरएक गुजराती को, खासकर हरेक राजकीय व्यक्ति को देखनेलायक है. मोदी जी को ऐसी अप्रतिम सफलता क्यों मिली उसका प्रत्युत्तर आपको मिल जायेगा.
हिस्सा -१
हिस्सा - २
हिस्सा - ३
हिस्सा - ४
जय गुजरात ... जय भारत ...
जब मोदीजी की अश्रु बहने लगे ...
अपतिम सफलता के बाद गांधीनगर के टाउनहोल में नवनिर्वाचित विधानसभा सदस्यों और कार्यकर्ताओं को श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया संबोधन ... जिसमें बात करते करते श्री मोदी जी की आंख से अश्रु बहने लगे ...
वास्तव में, भिष्म पितामह ने बाणशय्या पर युधिष्ठिर को जो सीख दी थी, उसकी याद ताजा हो गई.
पूरा वक्तव्य चार हिस्सों में है ...
प्रत्येक विडीयो हरएक गुजराती को, खासकर हरेक राजकीय व्यक्ति को देखनेलायक है. मोदी जी को ऐसी अप्रतिम सफलता क्यों मिली उसका प्रत्युत्तर आपको मिल जायेगा.
हिस्सा -१
हिस्सा - २
हिस्सा - ३
हिस्सा - ४
जय गुजरात ... जय भारत ...
Saturday, December 15, 2007
कुछ पंक्तियां ... जो अभी पूरी होनी बाकी है ...
न जाने कितनी बात हुई
न जाने कितनी किश्तों में
* * * * *
तमाशा देखनेवालो ! बजाओ एक-दो ताली,
यहां धरती के होठों पर छायी है हरियाली;
भिगोती हुई सूरज के किरनों की बौछारें,
बिछा देती है अवनि के मधूर वक्ष पर लाली.
* * * * *
शाम के ढलते हुए सूरज को मैंने देखा,
एक आह निकली और हो गया सवेरा.
* * * * *
जमाने भर की यादों को समेटा जा रहा दिल में,
तुम्हारे साथ गुजरे जो, वही बस याद है मुझको.
* * * * *
न जाने कितनी किश्तों में
* * * * *
तमाशा देखनेवालो ! बजाओ एक-दो ताली,
यहां धरती के होठों पर छायी है हरियाली;
भिगोती हुई सूरज के किरनों की बौछारें,
बिछा देती है अवनि के मधूर वक्ष पर लाली.
* * * * *
शाम के ढलते हुए सूरज को मैंने देखा,
एक आह निकली और हो गया सवेरा.
* * * * *
जमाने भर की यादों को समेटा जा रहा दिल में,
तुम्हारे साथ गुजरे जो, वही बस याद है मुझको.
* * * * *
Wednesday, December 05, 2007
एक घंटे की मुलाकात
एक घंटे की मुलाकात
इतनी बोझिल होगी
यह आज ही पाया.
तुम चले गये ...
हम पर्वतों पर चढे थे,
मैं कहां समंदर के किनारे आ पहुंचा ?
हमने छू ली थी ऊंचाई चट्टानों की,
मैं कहां घिर गया हवा के झोंकों में ?
हवा के हरेक झोंके के स्पर्श से
एक तीर निकल जाता है आरपार .
हरबार लबों पर आ जाता है,
तुम्हारा नाम .
हर पल एक-एक साल की तरह बीतता है
जब रात को तेरी यादों का झोंका
छू लेता है मुझे .
बुदबुदों की तरह हर लम्हा
एक घाव दे कर जाता है,
तुम्हारे साथ गुजारी हुई हर पल
आंखों के सामने से गुजरती है .
मैं तुम्हें आवाज देता हूं
मगर
मेरी आवाज कहां ? . . .
Subscribe to:
Posts (Atom)