Monday, November 26, 2007

छायी है घटा

छायी है घटा तो फिर बरसाना
तेरी महेरबानी, ना तरसाना .

अ़ब आकर दिखा जा तेरी अदा
शरमाना, अंगडाना, बल खाना.

जीवन की घनी-सी गलियों में
ना छोड के जाना, ना तड्पाना.

होले से चली है ठंडी पवन
आंखोंमें भरकर लहराना.

बारिश के सुहाने मौसम में
तुम मेरी तरस तो छिपा जाना.

1 comment:

36solutions said...

वाह भाई, सुन्‍दर पंक्तियां हैं ।

आरंभ
जूनियर कांउसिल

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अपनी माटी
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