छायी है घटा तो फिर बरसाना
तेरी महेरबानी, ना तरसाना .
अ़ब आकर दिखा जा तेरी अदा
शरमाना, अंगडाना, बल खाना.
जीवन की घनी-सी गलियों में
ना छोड के जाना, ना तड्पाना.
होले से चली है ठंडी पवन
आंखोंमें भरकर लहराना.
बारिश के सुहाने मौसम में
तुम मेरी तरस तो छिपा जाना.
Monday, November 26, 2007
Saturday, November 24, 2007
मेरी गुजराती कविताएं
नमस्कार ...
आप मेरी गुजराती कविताओं का आस्वाद नीचे दर्शित लींक पर क्लिक करके उठा सकते हैं...
आपके प्रोत्साहन और प्रेरणा से मेरे सृजन कार्य को अवश्य सहाय मिलेगी...
http://gujaratikavitayen.blogspot.com/
विजयकुमार दवे.
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विजयकुमार दवे.
Wednesday, November 14, 2007
आओ ! फिर से जियें हम
आओ ! फिर से जियें हम
आओ ! फिर से जियें हम,
एकदूसरे को एकदूसरे में समेटकर
खोज निकालें
नयी राह पर
नयी-सी मझिल।
झिल भरकर यादों की
बहती धारा बन जायें हम,
आऒ, एक नया शहर बसायें हम।
पंख लगाकर छूएं आसमां ...
निर्मल, निश्चल होकर
आऒ, डूबें
एकसाथ में
समंदर के गहरे तल में।
हाथ पसारें,
बांह डालें,
चलें डगर पर
एकदूजे का विश्वास लिये हम।
आऒ - फिर से जियें हम.
आओ ! फिर से जियें हम,
एकदूसरे को एकदूसरे में समेटकर
खोज निकालें
नयी राह पर
नयी-सी मझिल।
झिल भरकर यादों की
बहती धारा बन जायें हम,
आऒ, एक नया शहर बसायें हम।
पंख लगाकर छूएं आसमां ...
निर्मल, निश्चल होकर
आऒ, डूबें
एकसाथ में
समंदर के गहरे तल में।
हाथ पसारें,
बांह डालें,
चलें डगर पर
एकदूजे का विश्वास लिये हम।
आऒ - फिर से जियें हम.
Monday, November 12, 2007
धन्यवाद.... १००० मुलाकातियों को ...
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आप सभी का मैं रूणी हूं ...
आभार ...
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