Monday, October 05, 2009

बंजारानामा - 'नज़ीर' अकबराबादी

बंजारानामा - 'नज़ीर' अकबराबादी



टुक हिर्सो-हवा को छोड़ मियां, मत देस-बिदेस फिरे मारा

क़ज़्ज़ाक अजल का लुटे है दिन-रात बजाकर नक़्क़ारा

क्या बधिया, भैंसा, बैल, शुतुर क्या गौनें पल्ला सर भारा

क्या गेहूं, चावल, मोठ, मटर, क्या आग, धुआं और अंगारा

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा



ग़र तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है

ऐ ग़ाफ़िल तुझसे भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है

क्या शक्कर, मिसरी, क़ंद, गरी क्या सांभर मीठा-खारी है

क्या दाख़, मुनक़्क़ा, सोंठ, मिरच क्या केसर, लौंग, सुपारी है

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा



तू बधिया लादे बैल भरे जो पूरब पच्छिम जावेगा

या सूद बढ़ाकर लावेगा या टोटा घाटा पावेगा

क़ज़्ज़ाक़ अजल का रस्ते में जब भाला मार गिरावेगा

धन दौलत नाती पोता क्या इक कुनबा काम न आवेगा

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा



जब चलते-चलते रस्ते में ये गौन तेरी रह जावेगी

इक बधिया तेरी मिट्टी पर फिर घास न चरने पावेगी

ये खेप जो तूने लादी है सब हिस्सों में बंट जावेगी

धी, पूत, जमाई, बेटा क्या, बंजारिन पास न आवेगी

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा



ये खेप भरे जो जाता है, ये खेप मियां मत गिन अपनी

अब कोई घड़ी पल साअ़त में ये खेप बदन की है कफ़नी

क्या थाल कटोरी चांदी की क्या पीतल की डिबिया ढकनी

क्या बरतन सोने चांदी के क्या मिट्टी की हंडिया चपनी

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा



ये धूम-धड़क्का साथ लिये क्यों फिरता है जंगल-जंगल

इक तिनका साथ न जावेगा मौक़ूफ़ हुआ जब अन्न और जल

घर-बार अटारी चौपारी क्या ख़ासा, नैनसुख और मलमल

क्या चिलमन, परदे, फ़र्श नए क्या लाल पलंग और रंग-महल

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा



कुछ काम न आवेगा तेरे ये लालो-ज़मर्रुद सीमो-ज़र

जब पूंजी बाट में बिखरेगी हर आन बनेगी जान ऊपर

नौबत, नक़्क़ारे, बान, निशां, दौलत, हशमत, फ़ौजें, लशकर

क्या मसनद, तकिया, मुल्क मकां, क्या चौकी, कुर्सी, तख़्त, छतर

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा



क्यों जी पर बोझ उठाता है इन गौनों भारी-भारी के

जब मौत का डेरा आन पड़ा फिर दूने हैं ब्योपारी के

क्या साज़ जड़ाऊ, ज़र ज़ेवर क्या गोटे थान किनारी के

क्या घोड़े ज़ीन सुनहरी के, क्या हाथी लाल अंबारी के

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा



मग़रूर न हो तलवारों पर मत भूल भरोसे ढालों के

सब पत्ता तोड़ के भागेंगे मुंह देख अजल के भालों के

क्या डिब्बे मोती हीरों के क्या ढेर ख़जाने मालों के

क्या बुक़चे ताश, मुशज्जर के क्या तख़ते शाल दुशालों के

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा



क्या सख़्त मकां बनवाता है खंभ तेरे तन का है पोला

तू ऊंचे कोट उठाता है, वां गोर गढ़े ने मुंह खोला

क्या रैनी, ख़दक़, रंद बड़े, क्या बुर्ज, कंगूरा अनमोला

गढ़, कोट, रहकला, तोप, क़िला, क्या शीशा दारू और गोला

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा



हर आन नफ़े और टोटे में क्यों मरता फिरता है बन-बन

टुक ग़ाफ़िल दिल में सोच जरा है साथ लगा तेरे दुश्मन

क्या लौंडी, बांदी, दाई, दिदा क्या बन्दा, चेला नेक-चलन

क्या मस्जिद, मंदिर, ताल, कुआं क्या खेतीबाड़ी, फूल, चमन

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा



जब मर्ग फिराकर चाबुक को ये बैल बदन का हांकेगा

कोई ताज समेटेगा तेरा कोइ गौन सिए और टांकेगा

हो ढेर अकेला जंगल में तू ख़ाक लहद की फांकेगा

उस जंगल में फिर आह 'नज़ीर'इक तिनका आन न झांकेगा

सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा

1 comment:

V Anant said...

bahut achche, yahi hai jindagi ka asal phalsafa

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