Monday, May 28, 2007

आज रात मुजे तेरी बहुत याद आ रही है

अभी अभी मेरे वक्ष से कुछ निकला है।

मैं उफ भी न कर सका कि
वह मेरे सामने आकर बैठ गया।


दर्द का जिस्म से ईस तरह अलग हो जाना
हर एक रात की बात नहीं है.

कभी कभार तो मैंने ही बहुत कोशिशें की है
उसे बाहर निकाल खिंचने की
पर वह ईस तरह निकल आयेगा
कभी सोचा ही नहीं था.

आज रात मुजे तेरी बहुत याद आ रही है.

3 comments:

Anonymous said...

यह तो मेरे साथ भी हुआ है...

दर्द को जिस्म से अलग करके देखने की नजर चाहिये..

Keep it up...

शोभा said...

bahut hi sundar kavita. u really deserve a loud aplouse

परमजीत सिहँ बाली said...

अपनी संवेदनाओं को बखूबी अभिव्यक्त किया है।बढिया रचना है।अच्छी लगी।

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अपनी माटी
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