मृत्यु
मरघट पर
बरगद के पेड़ के नीचे
बैठा हुआ सन्नाटा
मुझे सदियों से कोसता रहा है ।
मैं अभी भी उठा नहीं हूँ
उसने मुझे आवाज दे -दे कर
कंठ में पहन ली है विषमाला ।
मैं नितांत अकेलापन चाहता हूँ
मैं अकेला रहना चाहता हूँ
मगर उसी बरगद पर
बैठा चमगादड
सन्नाटे को विषपान करते हुए देखकर
चिल्ला रहा है कब का ।
मुआ ! सोता भी नहीं
सोने देता भी नहीं,
जब कि
मुझे गाढी नींद आ रही है
सू - सू करते हुए सन्नाटे में ।
Wednesday, January 16, 2008
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